मैं दामन थामे बैठी हूँ
या चोली बिछाए बैठी हूँ
मैं महलों के चौबारों में हूँ
या कोटों पर आशियाना लुटाए बैठी हूँ
ना लिखना किस्से जिस्म पर मेरे
गर मैं ना कहाए बैठी हूँ
मैं बिक कर आई साथ तेरे
या तेरे संग ब्याहे बैठी हूँ
मैं कल की नई नवेली हूँ
या दशकों पहले आए बैठी हूँ
ना लिखना किस्से जिस्म पर मेरे
गर मैं ना कहाए बैठी हूँ
मैं प्यार के रिश्ते में हूँ तेरे
या अपना सब तेरे लिए गंवाए बैठी हूँ
मैं खड़ी हूँ खुद के पैरों पर
या तुझे सहारा बनाए बैठी हूँ
ना लिखना किस्से जिस्म पर मेरे
गर मैं ना कहाए बैठी हूँ
मैं हर पल उखड़ी रहती हूँ
या एक मुस्कान चिपकाए बैठी हूँ
मैं बतियाती हूँ हंस कर
या आँचल में शरमाए बैठी हूँ
ना लिखना किस्से जिस्म पर मेरे
गर मैं ना कहाए बैठी हूँ
मैं ख़ुशी में तेरे गले लगी
या गम के आँसूं छलकाए बैठी हूँ
मैं रातों से बातें करती
या सूरज की रोशनी में नहाए बैठी हूँ
ना लिखना किस्से जिस्म पर मेरे
गर मैं ना कहाए बैठी हूँ
ना ना समझे जो वो सर्वनाश की ओर चल पड़ा
रख कदम जरा पीछे अपने, जहां से ना का कारवाँ निकल पड़ा
image credits: inext live
So powerful ..great writing..!!
LikeLike